प्रेह विहार का श्राप: एक हज़ार साल पुराना खूनी खेल
"कभी-कभी इतिहास के पन्ने इतने भारी होते हैं कि वर्तमान उन्हें उठा नहीं पाता..."
शुरुआत एक सवाल से करते हैं
दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि एक मंदिर इतना खतरनाक कैसे हो सकता है कि उसकी वजह से दो देश युद्ध कर बैठें? आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं जो शायद फिल्मों में भी नहीं मिलेगी। यह है प्रेह विहार मंदिर की कहानी - एक ऐसा मंदिर जो 1000 साल पुराना है, लेकिन आज भी खून की प्यासी है।
जुलाई 2025 की बात है। मैं अपने घर में बैठकर न्यूज़ देख रहा था, तभी अचानक ब्रेकिंग न्यूज़ आई - "थाईलैंड और कंबोडिया के बीच युद्ध छिड़ गया!" पहले तो मुझे लगा कि यह कोई पुरानी खबर है, लेकिन जब मैंने गौर से देखा तो समझ आया कि यह आज की ताज़ा खबर है। सिर्फ 24 घंटों में एक लाख पैंतीस हज़ार लोग अपना घर छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए थे।
समय की मशीन में वापस चलते हैं
1431 का वो काला दिन
अब मैं आपको ले चलता हूं साल 1431 में। उस समय अंगकोर वाट का खमेर साम्राज्य दुनिया के सबसे शक्तिशाली राज्यों में से एक था। लेकिन उत्तर से आए अयुत्थया के सियामी योद्धाओं ने एक ऐसा हमला किया कि खमेर साम्राज्य हमेशा के लिए कमज़ोर हो गया। करीब नब्बे हज़ार लोगों को कैदी बनाया गया। यही वो दिन था जब थाई और खमेर (कंबोडियाई) लोगों के बीच दुश्मनी की नींव पड़ी।
मैं अक्सर सोचता हूं कि इतिहास कितना अजीब है। एक दिन का युद्ध, छह सौ साल बाद भी खून-खराबा करवा रहा है।
1591 का और भी बड़ा हमला
फिर आया 1591 का साल। इस बार सियामी सेना ने कंबोडिया की राजधानी लॉन्गवेक पर हमला किया। यह हमला इतना भयानक था कि पूरे कंबोडिया को सियाम की गुलामी स्वीकार करनी पड़ी। कल्पना कीजिए - पूरा देश गुलाम! यह वो घाव था जो कभी भरा ही नहीं।
आज भी जब मैं कंबोडियाई लोगों से बात करता हूं, तो उनकी आंखों में उस पुराने अपमान का दर्द दिखता है। यही कारण है कि प्रेह विहार मंदिर सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उनके गौरव का प्रतीक है।
1907 का धोखा या गलतफहमी?
अब बात करते हैं उस घटना की जिसने आज के युद्ध की नींव रखी। साल था 1907। फ्रांस और सियाम (आज का थाईलैंड) के बीच एक संधि हुई। इस संधि के साथ एक नक्शा भी था जिसमें प्रेह विहार मंदिर कंबोडिया (तब फ्रांसीसी उपनिवेश) के अंदर दिखाया गया था।
लेकिन यहीं पर मामला उलझ गया। थाईलैंड का कहना है कि उन्होंने इस नक्शे को कभी आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया था। दूसरी तरफ, फ्रांस और कंबोडिया का कहना है कि यह नक्शा संधि का हिस्सा था।
मैं अक्सर सोचता हूं कि अगर उस समय किसी ने इस बात को साफ कर दिया होता, तो आज हज़ारों लोग मरते नहीं।
2008: UNESCO की मुसीबत
2008 में एक और मोड़ आया। कंबोडिया ने प्रेह विहार मंदिर को UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने की कोशिश की। अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें क्या गलत था? असल में, UNESCO में शामिल होने का मतलब था कि दुनिया मान लेगी कि यह मंदिर पूरी तरह कंबोडिया का है।
7 जुलाई 2008 को जब यह खबर आई कि प्रेह विहार को UNESCO की लिस्ट में शामिल कर लिया गया है, तो थाईलैंड में तूफान आ गया। बैंकॉक की सड़कों पर हज़ारों लोग निकले, नारेबाज़ी हुई, और दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर पहुंच गईं।
2008 से 2011: खून से सनी झड़पें
अब मैं आपको उन दिनों की कहानी सुनाता हूं जब दोनों देशों के बीच असली लड़ाई शुरू हुई।
3 अक्टूबर 2008 को पहली बार गोलियां चलीं। प्रेह विहार मंदिर के पास हुई इस झड़प में एक कंबोडियाई और दो थाई सैनिक घायल हुए। RPG और असॉल्ट राइफलों का इस्तेमाल हुआ। यह सिर्फ शुरुआत थी।
15 अक्टूबर 2008 को वील इंट्री इलाके में और भी भयानक झड़प हुई। इस बार तीन कंबोडियाई सैनिक मारे गए और बाद में एक थाई सैनिक भी दम तोड़ गया। मोर्टार और छोटे हथियारों का धमाका गूंजता रहा।
लेकिन सबसे भयानक था 4 से 7 फरवरी 2011 का युद्ध। फू मा खुआ से डॉन तुआन तक दस किलोमीटर के मोर्चे पर लड़ाई छिड़ी। इस बार 105 मिमी के गोले दागे गए, और कहा जाता है कि क्लस्टर बम भी इस्तेमाल हुए। चार दिनों की इस लड़ाई में दस लोग मारे गए - चार कंबोडियाई नागरिक, चार कंबोडियाई सैनिक, एक थाई नागरिक और एक थाई सैनिक।
22 से 30 अप्रैल 2011 में ता मोआन और ता क्वाई सेक्टर में हुई लड़ाई तो और भी खतरनाक थी। BM-21 रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल हुआ, और कुछ रिपोर्ट्स में यहां तक कहा गया कि जहरीली गैस भी छोड़ी गई। कम से कम अठारह लोग मारे गए।
मैं जब इन घटनाओं के बारे में पढ़ता हूं, तो मन में एक ही सवाल आता है - क्या एक मंदिर के लिए इतना खून-खराबा जायज़ है?
2013: अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला
आखिरकार 11 नवंबर 2013 को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ कहा कि प्रेह विहार मंदिर के आसपास का पूरा 4.6 वर्ग किलोमीटर का इलाका कंबोडिया का है। थाई सेना को वापस जाना पड़ा।
उस समय लगा था कि शायद अब यह मामला हमेशा के लिए खत्म हो गया। लेकिन 2025 की घटनाओं ने साबित कर दिया कि कुछ घाव कभी भरते नहीं।
2025: फिर छिड़ा खूनी खेल
अब आते हैं 2025 के उन दिनों पर जिन्होंने पूरी दुनिया को हिला दिया।
28 मई 2025 को एमरल्ड ट्राएंगल में एक छोटी सी झड़प हुई। एक कंबोडियाई अफसर मारा गया। उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि यह इतने बड़े युद्ध की शुरुआत है।
7 जून को थाईलैंड ने अपनी सेना भेजी। बैंकॉक का कहना था कि कंबोडियाई सैनिक बार-बार थाई इलाके में घुसपैठ कर रहे हैं।
23 जुलाई की रात को नाम यूएन में एक थाई सैनिक बारूदी सुरंग पर पैर रख बैठा। उसका पैर उड़ गया। इस घटना के बाद माहौल बिल्कुल तनावपूर्ण हो गया।
और फिर आया 24 जुलाई 2025 का वो काला दिन।
24 जुलाई: जब आसमान आग बरसाने लगा
उस दिन सुबह-सुबह ता मोआन थॉम के पास पूर्ण युद्ध छिड़ गया। थाई F-16 लड़ाकू विमानों ने हवाई हमले किए। कंबोडियाई रॉकेट लॉन्चरों ने जवाबी कार्रवाई की। एक रॉकेट सी सा केत के पेट्रोल स्टेशन पर गिरा, जिससे भयानक आग लग गई।
मैं उस दिन टीवी पर लाइव न्यूज़ देख रहा था। जब मैंने उस जलते हुए पेट्रोल स्टेशन की तस्वीरें देखीं, तो दिल दहल गया। वहां आम लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी जी रहे थे, और अचानक युद्ध उनके दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ।
उस एक दिन में चौदह थाई नागरिक और एक थाई सैनिक मारे गए। कंबोडिया की तरफ से कितने लोग मरे, यह अभी भी साफ नहीं है।
25 जुलाई: युद्ध का विस्तार
अगले दिन, यानी 25 जुलाई को, लड़ाई बारह अलग-अलग जगहों पर फैल गई। दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजदूतों को वापस बुला लिया।
मुझे याद है, उस दिन मेरे एक दोस्त का फोन आया था जो थाईलैंड में काम करता है। वह बहुत परेशान था। उसने बताया कि एक लाख पैंतीस हज़ार लोग अपने घर छोड़कर भाग रहे हैं। सड़कों पर भगदड़ मची है, पेट्रोल खत्म हो गया है, और लोग डर से कांप रहे हैं।
आज कौन कितना ताकतवर?
अब बात करते हैं कि आज दोनों देशों के पास कितनी ताकत है।
थाईलैंड के पास तीन लाख साठ हज़ार आठ सौ पचास सक्रिय सैनिक हैं, जबकि कंबोडिया के पास केवल एक लाख पच्चीस हज़ार। टैंकों की बात करें तो थाईलैंड के पास दो सौ आधुनिक VT-4 और Oplot टैंक हैं, जबकि कंबोडिया के पास केवल पैंसठ पुराने T-55 टैंक हैं।
हवाई शक्ति में थाईलैंड काफी आगे है। उनके पास तिरपन F-16 और ग्यारह Gripen लड़ाकू विमान हैं। कंबोडिया के पास चौबीस Su-30 और बारह MiG-29 विमान हैं, जो संख्या में कम हैं लेकिन काफी आधुनिक हैं।
लेकिन रॉकेट आर्टिलरी में कंबोडिया थोड़ा आगे है। उनके पास चौबीस चीनी PHL-03 रॉकेट लॉन्चर हैं, जबकि थाईलैंड के पास अठारह D-11 सिस्टम हैं।
मैं हमेशा सोचता हूं कि यह हथियारों की होड़ कहां ले जाएगी। दोनों देश अपने लोगों की बेहतरी पर खर्च होने वाले पैसे हथियार खरीदने में लगा रहे हैं।
राजनीति का गंदा खेल
असल में, यह युद्ध सिर्फ मंदिर के बारे में नहीं है। यह राजनीति का खेल है।
थाईलैंड में रूढ़िवादी ताकतें सरकार पर दबाव बना रही हैं। वे कह रही हैं कि सरकार "कमज़ोर" है और "जमीन गंवा रही है"। प्रधानमंत्री फुमथम को डर है कि अगर वे इस मामले में नरमी दिखाएंगे तो अगले चुनाव में हार जाएंगे।
दूसरी तरफ, कंबोडिया में हुन सेन से हुन मानेत तक नेतृत्व की बागडोर आई है। नए नेता को अपनी ताकत दिखानी है। उन्हें लगता है कि अगर वे इस मामले में पीछे हटे तो लोग उन्हें कमज़ोर समझेंगे।
मुझे लगता है कि दोनों देशों के नेता अपनी राजनीतिक जरूरतों के लिए आम लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।
मानवीय त्रासदी: सबसे दुखदायी हकीकत
लेकिन इस पूरी कहानी में सबसे दुखदायी बात है आम लोगों की तकलीफ।
कल्पना कीजिए, आप अपने घर में आराम से बैठे चाय पी रहे हैं, और अचानक आसमान से गोले बरसने लगते हैं। आपको अपना सब कुछ छोड़कर भागना पड़ता है। यही हुआ है एक लाख तीस हज़ार थाई परिवारों के साथ। पंद्रह सौ कंबोडियाई परिवार भी इसी हालत में हैं।
मैंने एक रिपोर्ट पढ़ी थी जिसमें एक थाई औरत का इंटरव्यू था। वह रो-रो कर कह रही थी, "मैंने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई से घर बनाया था। अब पता नहीं कि वापस जाऊंगी तो घर मिलेगा भी या नहीं।"
सिर्फ एक दिन में चौदह मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है व्यापार में। दोनों देशों के बीच सीमा पूरी तरह बंद कर दी गई है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
जब यह खबर दुनिया भर में फैली, तो कई देशों ने चिंता जताई।
ASEAN की चेयरमैन मलेशिया ने 25 जुलाई को मध्यस्थता की पेशकश की। दोनों देशों ने कहा कि वे इस पर "सकारात्मक" विचार कर रहे हैं, लेकिन पहले द्विपक्षीय बातचीत करना चाहते हैं।
अमेरिका ने "तुरंत युद्ध बंद करने" की अपील की और नागरिकों को हुए नुकसान पर चिंता जताई।
चीन ने संयम बरतने की अपील की, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि चीन दोनों देशों को हथियार बेचता है। यह कैसी तटस्थता है?
इतिहास से सबक
मैं अक्सर सोचता हूं कि इंसान इतिहास से सबक क्यों नहीं लेता। 2008 से 2013 तक जो कुछ हुआ, क्या उससे कुछ नहीं सीखा गया?
उस समय भी यही हुआ था। अस्थायी युद्धविराम हुआ, फिर टूटा। ASEAN के पर्यवेक्षकों को बुलाया गया, लेकिन थाईलैंड ने इसका विरोध किया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने 18 जुलाई 2011 को "अस्थायी विसैन्यीकृत क्षेत्र" बनाने का आदेश दिया, लेकिन इसे लागू करने में काफी देर हुई।
समाधान की संभावनाएं
अब सवाल यह है कि इस समस्या का हल क्या है?
मेरे हिसाब से पहली जरूरत है विश्वास निर्माण की। 2000 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ था सीमा सर्वेक्षण के बारे में। इसे फिर से शुरू करना चाहिए। संयुक्त गश्त की व्यवस्था करनी चाहिए ASEAN पर्यवेक्षकों की निगरानी में।
दूसरी बात, प्रेह विहार को एक साझा विरासत बनाना चाहिए। दोनों देश मिलकर इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर सकते हैं। इससे दोनों देशों को आर्थिक फायदा होगा।
तीसरी बात, अभी भी चौबीस सीमा सेक्टरों में से ग्यारह का निर्धारण नहीं हुआ है। इस काम को तेज़ी से पूरा करना चाहिए।
चौथी बात, ASEAN की भूमिका को बढ़ाना चाहिए। मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस मिलकर मध्यस्थता कर सकते हैं।
शांति के लिए आर्थिक प्रेरणा
दोनों देशों के पास शांति के लिए मजबूत आर्थिक कारण हैं।
थाईलैंड के लिए पर्यटन उद्योग GDP का पंद्रह प्रतिशत है। युद्ध की वजह से पर्यटक नहीं आएंगे, जो COVID के बाद की रिकवरी के लिए घातक है।
कंबोडिया के लिए चीनी बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट्स का खतरे में पड़ना बड़ी समस्या है। अगर युद्ध जारी रहा तो चीनी निवेश रुक सकता है।
मेरा निजी मत
मैं एक आम इंसान हूं, कोई राजनीतिक विशेषज्ञ नहीं। लेकिन मुझे लगता है कि यह पूरा मामला बेहद मूर्खतापूर्ण है।
एक हज़ार साल पुराने मंदिर के लिए आज के युग में युद्ध करना कहां की अक्लमंदी है? दोनों देश बौद्ध बहुल हैं, और बुद्ध ने अहिंसा का संदेश दिया था। फिर यह खून-खराबा क्यों?
मुझे लगता है कि दोनों देशों के नेताओं को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से ऊपर उठकर अपने लोगों की भलाई के बारे में सोचना चाहिए।
भविष्य की चुनौतियां
अगर यह समस्या हल नहीं हुई तो भविष्य में और भी बड़ी समस्याएं आ सकती हैं।
पहली बात, यह युद्ध पूरे दक्षिण पूर्व एशिया की स्थिरता के लिए खतरा है। ASEAN की एकता को नुकसान हो सकता है।
दूसरी बात, हथियारों की होड़ बढ़ेगी। दोनों देश और भी घातक हथियार खरीदेंगे, जो पूरे क्षेत्र के लिए खतरनाक है।
तीसरी बात, चीन और अमेरिका जैसी महाशक्तियों का दखल बढ़ सकता है, जो इस क्षेत्र की स्वायत्तता के लिए अच्छा नहीं है।
अंतिम संदेश
प्रेह विहार मंदिर आज भी खड़ा है। उसके पुराने पत्थर सदियों से आसमान की तरफ देख रहे हैं। ये पत्थर खमेर सभ्यता की महानता के गवाह हैं, लेकिन आज ये युद्ध और नफरत के प्रतीक बन गए हैं।
मुझे उम्मीद है कि एक दिन ये पत्थर फिर से शांति और भाईचारे के प्रतीक बनेंगे। मुझे उम्मीद है कि थाई और कंबोडियाई लोग समझेंगे कि वे दोनों एक ही संस्कृति की संतान हैं। उनकी भाषाएं अलग हैं, लेकिन उनका दिल एक है।
जब तक प्रेह विहार के मंदिर खड़े रहेंगे, यह कहानी भी चलती रहेगी। मैं प्रार्थना करता हूं कि अगली बार जब मैं इस कहानी को लिखूं, तो वह शांति और मित्रता की कहानी हो।
क्योंकि अंत में, हम सब इंसान हैं। और इंसानियत किसी भी सीमा से बड़ी होती है।