मैं तीस साल से भारतीय राजनीति को कवर कर रहा हूं, लेकिन कल संसद में जो हुआ, वह कुछ अलग था। हवा में तनाव इतना गाढ़ा था कि आप उसे महसूस कर सकते थे। जब गृह मंत्री अमित शाह ने माइक पकड़ा और पी. चिदंबरम की तरफ मुंह करके बोलना शुरू किया, तो पूरी लोकसभा में सन्नाटा छा गया।
यह सिर्फ कोई राजनीतिक बहस नहीं थी। यह था दो अलग विचारधाराओं का आमना-सामना, जहां दांव पर था देश की सुरक्षा का सवाल और पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों का भविष्य।
वो काला दिन जिसने सब कुछ बदल दिया
22 अप्रील 2025। पहलगाम का वह दिन जो हर भारतीय के दिल में एक गहरा घाव छोड़ गया। मैं उस दिन भी दिल्ली में था, न्यूज़रूम में बैठा खबरों का इंतजार कर रहा था। फिर वे तस्वीरें आने लगीं जिन्हें देखकर मेरे हाथ कांप गए।
26 बेगुनाह लोग। सिर्फ इसलिए मारे गए क्योंकि वे हिंदू थे। आतंकवादियों ने लोगों को अलग किया, उनसे इस्लामी आयतें पढ़वाईं, और जो नहीं पढ़ सके उन्हें गोली मार दी। यह सिर्फ आतंकवादी हमला नहीं था—यह था इंसानियत पर हमला।
जब मैंने वहां के एक बचे हुए व्यक्ति से बात की, तो उसकी आंखों में वह डर आज भी दिख रहा था। "साहब, वे हमसे हनुमान चालीसा मंगवा रहे थे," उसने कांपती आवाज में कहा। "जो नहीं बोल सका, उसे वहीं खत्म कर दिया।"
चिदंबरम का विवादास्पद बयान: जब अनुभव गलत दिशा में गया
पी. चिदंबरम को मैं बरसों से जानता हूं। तेज़ दिमाग, कानून की गहरी समझ, और हमेशा अपनी बात कहने का साहस। लेकिन जब उन्होंने The Quint को इंटरव्यू दिया, तो शायद उन्होंने नहीं सोचा था कि उनके शब्द इतना बड़ा तूफान मचाएंगे।
"क्या उन्होंने आतंकवादियों की पहचान की है? वे कहां से आए? हमारी जानकारी के अनुसार, वे घरेलू आतंकवादी हो सकते हैं। आप यह क्यों मान लेते हैं कि वे पाकिस्तान से आए? इसका कोई सबूत नहीं है।"
जब मैंने यह सुना, तो मेरा पहला ख्याल था—"यार, चिदंबरम साहब, अभी नहीं।" राजनीति में टाइमिंग सब कुछ होती है, और यह गलत समय था गलत सवाल पूछने का।
अमित शाह का जवाब: जब सबूत बोलते हैं
अमित शाह का गुस्सा उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था। मैंने उन्हें कई बार संसद में बोलते देखा है, लेकिन कल का अंदाज़ कुछ अलग था। वह सिर्फ राजनीतिक जवाब नहीं दे रहे थे—वह सबूत पेश कर रहे थे।
"कल पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम जी ने सवाल उठाया—क्या सबूत है कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए? मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि पाकिस्तान को बचाने से उन्हें क्या मिलेगा।"
और फिर शाह ने वह किया जो कम राजनेता करते हैं—उन्होंने सबूत दिए:
पाकिस्तानी वोटर आईडी: ऑपरेशन महादेव में मारे गए तीन आतंकवादियों में से दो के पास पाकिस्तानी वोटर पहचान संख्या थी।
पाकिस्तानी सामान: आतंकवादियों के पास मिली चॉकलेट तक पाकिस्तान में बनी थी।
हथियारों का विश्लेषण: फोरेंसिक जांच में पुष्टि हुई कि आतंकवादियों से बरामद राइफलें वही थीं जो पहलगाम हमले में इस्तेमाल हुई थीं।
मैं सोच रहा था—यह तो कोर्ट में केस जीतने जितने सबूत हैं।
ऑपरेशन महादेव: न्याय की जीत
28 जुलाई 2025। श्रीनगर के डाचीगाम नेशनल पार्क के घने जंगलों में हुआ ऑपरेशन महादेव मेरे लिए व्यक्तिगत था। क्यों? क्योंकि मैंने पहलगाम के पीड़ितों के परिवारों से मिला था।
जब खबर आई कि सुलेमान शाह (उर्फ हाशिम मूसा) मार गिराया गया—वही व्यक्ति जो पाकिस्तान आर्मी के स्पेशल सर्विस ग्रुप का कमांडो था और बाद में लश्कर-ए-तैयबा में शामिल हुआ—तो मुझे लगा जैसे न्याय हुआ हो।
जिब्रान और हमजा अफगानी भी पाकिस्तानी नागरिक थे। तीनों लश्कर से जुड़े थे। तीनों पहलगाम नरसंहार के मास्टरमाइंड थे।
राजनीतिक तूफान में फंसी सच्चाई
इस पूरे विवाद को देखते हुए मुझे लगता है कि हम एक बड़ी समस्या में फंस गए हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा भी अब राजनीति का हथियार बन गई है।
भाजपा का रुख: जीरो टॉलरेंस फॉर टेरर। साफ और सीधी बात—पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख।
कांग्रेस की दलील: पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग। सरकार से सवाल पूछना कोई गुनाह नहीं।
लेकिन समस्या यह है कि दोनों तरफ अपनी-अपनी राजनीतिक मज़बूरियां हैं।
मीडिया का खेल और सोशल मीडिया का जंगल
सोशल मीडिया पर जो हुआ, वह देखकर मेरा दिल दुखा। #ChidambaramPakistanAgent और #ShahLiesAgain जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे। लोग वीडियो के छोटे हिस्से share कर रहे थे, context भूलकर।
चिदंबरम ने ट्वीट किया: "सबसे बुरा वह ट्रोल है जो पूरा रिकॉर्डेड इंटरव्यू दबाकर, दो वाक्य लेकर, कुछ शब्दों को मिटाकर वक्ता को काले रंग में रंग देता है।"
भाजपा प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला का जवाब: "मोदी का विरोध करने के चक्कर में कांग्रेस पार्टी सेना की बहादुरी पर सवाल उठा रही है और पाकिस्तान को क्लीन चिट देकर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को कटघरे में खड़ा कर रही है।"
अंतर्राष्ट्रीय आयाम: ट्रम्प की दखलअंदाजी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का दावा कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में मध्यस्थता की, इस विवाद में एक नया मोड़ ले आया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे खारिज किया, लेकिन विपक्ष ने इसे सरकार पर हमला करने का मौका बना लिया।
क्या सीखा मैंने इस पूरे विवाद से
तीस साल की पत्रकारिता में मैंने एक बात सीखी है—सच्चाई अक्सर राजनीतिक शोर में दब जाती है। यहाँ सच्चाई यह है:
- पहलगाम हमला: एक त्रासदी थी जिसकी निंदा हर भारतीय को करनी चाहिए
- पाकिस्तानी कनेक्शन: सबूत साफ और मजबूत हैं
- ऑपरेशन सिंदूर और महादेव: भारत की सैन्य क्षमता को दिखाते हैं
- राजनीतिक बहस: जरूरी है, लेकिन राष्ट्रीय एकता के साथ
आगे का रास्ता
जब मैं इस विवाद पर सोचता हूं, तो मुझे लगता है कि हमें कुछ बुनियादी सवाल पूछने चाहिए:
क्या हम अपनी राजनीतिक लड़ाई में राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगा रहे हैं? क्या विपक्ष का काम सिर्फ विरोध करना है या रचनात्मक सुझाव देना भी? क्या सत्ता पक्ष हर सवाल का जवाब "राष्ट्रवाद" से दे सकता है?
इंसानी चेहरा
इस पूरी राजनीतिक आंधी में हम भूल जाते हैं कि पहलगाम में 26 परिवार अभी भी अपने प्रियजनों का इंतजार कर रहे हैं। उनके लिए यह बहस सिर्फ राजनीति नहीं है—यह उनके दर्द का सवाल है।
मैंने पीड़ित परिवारों से मिला है। वे नहीं चाहते कि उनका दुख राजनीतिक स्कोरिंग का साधन बने। वे चाहते हैं न्याय, सुरक्षा, और यह भरोसा कि ऐसा दोबारा नहीं होगा।
अंतिम विचार
संसद में हुई यह बहस हमारे लोकतंत्र की ताकत और कमज़ोरी दोनों को दिखाती है। ताकत यह कि हम खुलकर बहस कर सकते हैं। कमज़ोरी यह कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा को भी पार्टी पॉलिटिक्स के रंग में रंग देते हैं।
अमित शाह के पास सबूत थे, और उन्होंने उन्हें पेश किया। चिदंबरम के पास सवाल थे, और उन्होंने उन्हें उठाया। दोनों अपनी जगह सही थे, लेकिन तरीका शायद गलत था।
भविष्य में जब भी ऐसे मुद्दे आएं, तो हमें याद रखना चाहिए कि देश की सुरक्षा किसी एक पार्टी की जिम्मेदारी नहीं है—यह हम सभी की साझा जिम्मेदारी है।
अंत में, मैं यही कहूंगा—राजनीति करनी है तो करिए, लेकिन देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं। क्योंकि जब आतंकवादी हमला करते हैं, तो वे यह नहीं देखते कि आप भाजपा के हैं या कांग्रेस के। वे सिर्फ भारतीय देखते हैं।
और हमें भी सिर्फ भारतीय बनकर इनका सामना करना चाहिए—एकजुट, मजबूत, और अडिग।
FAQ Section
Q1: What exactly did P. Chidambaram say about the Pahalgam terrorists?
A1: In an interview with The Quint, Chidambaram suggested that the Pahalgam attackers could have been "homegrown terrorists" and questioned what evidence proved they came from Pakistan, stating "There's no evidence of that."
Q2: What evidence did Amit Shah present to counter Chidambaram's claims?
A2: Shah presented Pakistani voter IDs found on two terrorists, Pakistan-made chocolates recovered from them, forensic evidence linking their weapons to the Pahalgam attack, and identification by previously arrested accomplices.
Q3: What was Operation Mahadev?
A3: Operation Mahadev was a counter-terrorism operation conducted on July 28, 2025, near Srinagar that eliminated three Pakistani terrorists, including the mastermind of the Pahalgam attack, Suleiman Shah.
Q4: How did this controversy affect the parliamentary debate on Operation Sindoor?
A4: The controversy overshadowed the broader debate, turning the discussion from military strategy and success into a political battle over Pakistan policy and national security approaches.
Q5: What was the international dimension to this controversy?
A5: The controversy was complicated by U.S. President Trump's claims that he mediated the India-Pakistan ceasefire, which the opposition used to question the government's diplomatic handling of the crisis.